Tuesday, November 17, 2009

Socho zara kya hota...

सोचो ज़रा क्या होता, अगर दुनिया में कहीं गम का निशाँ न होता..
खुशियाँ कितनी अनमोल हैं,  इसपर शायद किसी का यकीन न होता..
क्या सुबह की किरणों का इंतज़ार कोई करता?
अगर दिन के बाद रात का अँधेरा न होता?

प्यास न होती दुनिया में,  तो क्या कीमत होती पानी की?
आस न होती दुनिया में, तो क्या कीमत होती पाने की?
बिछड़ने का गम जब होता है, तभी कदर रिश्तों की होती है..
वरना एक ही छत के नीचे हों, तो भी कोई किसीको पूछता नहीं..

इसीलिए शायद सच ही कहा है किसीने,
"गुलशन  की  फ़क़त  फूलों  से  नहीं,
 काँटों  से  भी  ज़ीनत  होती  है..
 जीने  के  लिए  दुनिया  में,
 गम  की  भी  ज़रूरत  होती  है.."

Sunday, November 8, 2009

These are a few of my favourite things...............



..sitting on the window, with a steaming mug of coffee and watching the rains.


..getting a looooong letter from someone!


..seeing a baby smile.


..a message (sms) from someone when I'm least expecting it!


..waking up and realizing that I can sleep for some more time; yippee!


..spending a lazy sunday afternoon in bed.. with my favourite book :)


..on a long drive with my better half!


..sitting n watching Tom n Jerry together :))


..waking up wih a smile (after effects of a lovely dream).


..playing with a pup/kitten.


..crying with joy!


..digging into a delicious chocolate cake; and fighting over who gets the bigger peice - (which is the hubby of course!!)


..a live band playing my favourite number!



Friday, November 6, 2009

Tryst wid Shayari


दिल दे दिया उन्हें,
और अब वो हमसे कहते हैं, उनका दिल किसी और का था,
हमारी हर धड़कन पर सिर्फ उनका नाम है,
और उनके दिल की हर दुआ में किसी और का नाम था....


*-*-*-*


सितम पर सितम वो किये जा रहे हैं,
हम सिर्फ आँसू पिए जा रहे हैं,
अनजान हैं वोह हमारी तड़प से,
अनजान हैं वोह हर एक गम से,
शिकवे तो हैं लेकिन कह न सकेंगे,
उन्ही से मोहब्बत किये जा रहे हैं...


*-*-*-*


चाह कर भी हाले दिल बयान न कर सके,
उम्र भर डरते रहे कहीं वो इनकार न कर दे,
जब ज़िन्दगी का आखरी मोड़ आया,
तब दिल थाम कर इज़हार किया अपनी मोहब्बत का.
और तब पता चला की,
वो भी अब तक खामोश उसी इंकार के दर से थे..


*-*-*-*


सिर्फ इतना ही चाहा  था हमेशा,
खुशियाँ ही खुशियाँ हों अज़ीज़ के दामन में,
क्या पता था किसी रोज़ गम भी दस्तक दे जायेगी,
पेहन कर हमारा ही नकाब..


*-*-*-*