आज बार बार यही सवाल सबके सामने आ रहा है,
क्या दहशत फैलाना ही कुछ लोगों का मक़सद बन गया है?
क्या किसी के भी दर्द का एहसास नहीं इन्हे?
क्या ख़ुद की मौत का भी खौफ नहीं इन्हे?
क्यूँ कुछ लोगों की बदौलत, पूरे मज़हब पर ऊँगली उठती है?
क्यूँ कुछ लोगों की हैवानियत से, एक मुल्क की नब्ज़ रुक जाती है?
हिंदूं हो या मुसलमान,
हम जुड़े तो इंसानीयत के रिश्ते से ही हैं.
सीख़ हो या इसाई,
ऊपर वाला तो सबका एक ही है.
फिर क्यूँ खुदा के नाम पर हर ज़ुल्म होता है?
क्यूँ इस मज़हब की लडाई में उसका नाम बदनाम होता है?
क्या दहशत फैलाना ही कुछ लोगों का मक़सद बन गया है?
क्या किसी के भी दर्द का एहसास नहीं इन्हे?
क्या ख़ुद की मौत का भी खौफ नहीं इन्हे?
क्यूँ कुछ लोगों की बदौलत, पूरे मज़हब पर ऊँगली उठती है?
क्यूँ कुछ लोगों की हैवानियत से, एक मुल्क की नब्ज़ रुक जाती है?
हिंदूं हो या मुसलमान,
हम जुड़े तो इंसानीयत के रिश्ते से ही हैं.
सीख़ हो या इसाई,
ऊपर वाला तो सबका एक ही है.

क्यूँ इस मज़हब की लडाई में उसका नाम बदनाम होता है?