सोचो ज़रा क्या होता, अगर दुनिया में कहीं गम का निशाँ न होता..
खुशियाँ कितनी अनमोल हैं, इसपर शायद किसी का यकीन न होता..
क्या सुबह की किरणों का इंतज़ार कोई करता?
अगर दिन के बाद रात का अँधेरा न होता?
प्यास न होती दुनिया में, तो क्या कीमत होती पानी की?
आस न होती दुनिया में, तो क्या कीमत होती पाने की?
बिछड़ने का गम जब होता है, तभी कदर रिश्तों की होती है..
वरना एक ही छत के नीचे हों, तो भी कोई किसीको पूछता नहीं..
इसीलिए शायद सच ही कहा है किसीने,
"गुलशन की फ़क़त फूलों से नहीं,
काँटों से भी ज़ीनत होती है..
जीने के लिए दुनिया में,
गम की भी ज़रूरत होती है.."
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